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पुंरीकें ॥ खमग कल्लोल नृपदंस खेले तिहां, फेर न ह्रीं जलधि रणमां रतीकें ॥ स० ॥ ५ ॥ सुहरु वच नोपरि वचन प्रतिहत करे, सिंहनादें महा सिंहनादं ॥ नुजयुगा फाल जुज युगा फालता, करत रण नयें लीला विवादं ॥ स०॥ ६ ॥ वीर शिरवाल रण चालमां उत्सुक्या, ऊर्ध्वमुख तास रुचि तेम शोजी ॥ ज्वलित मन रोप पावकथकी नीसरे, धूम धोरणी जिसी गग न थोजी ॥ स० ॥ ७ ॥ करत ललकार हलकार जम को पिया, चलत धमकारशुं शेष मोले । कर. ग्रही ढाल धुंताल धुंकल रसें, बयल बंबाल करवाल तोले ॥ स० ॥ ॥ ८ ॥ जाति जुज वीर्य गुण वंश उदभावता, बंदिजन प्रबल शूरां जगामे ॥ उमगिया योध बल बोध करि आपणा, रण तणी सबल बाजी फबामे ॥ स० ॥ ॥ ५ ॥ अश्व खुरताल पकतालथी ऊपमी, खेह अं बर चढी सूर बायो || दिशि हुई धुंधली अरुण रंगें धरा, जाणे विण काल वरसाल आयो । स० ॥ १० ॥ सगग शर धार वरषण लगी चिहुं दिशें, बगग बरठी चले अगग गेमी || रण रणकार नली (फरसी ) तणा वागिया, सिल सुहमाण नाखे उथेमी ॥ स० ॥ ॥ ११ ॥ खमग खटकार गजदंत ऊपर पमें, जरर
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