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केता सह करे, धोपां केई धरंत ॥ ६ ॥ गज गाजे हय देषणें, रथ चितकार अखंग ॥ सिंहनाद शूरा तो, बधिर हू ब्रह्मं ॥ ७ ॥ कवच हरा आयुधधरा, पूरा रण खेलाम || रणथंजे जई वागियां, फोजां तणां कमा म ॥ ८ ॥ वे दल आमा साहमां, कामियां आई सवा हिं ॥ ताम लियणपेठा वही, तारू जमरा मांहिं ॥ ए ॥ || ढाल योगणीशमी ॥ कमखानी देशी ॥ ॥ सजे फोज छाति चोज नृप बे जमे सिद्धशुं, रण तथा दाव रमता न चूके | उनक वनना महा मद क्या हाथिया, जेम गिरिवर ताई के || ॥ सजे० ॥ १ ॥ गज चढ्यो जेह ते गज चढ्याथी अमे, रथ चढ्यो रथचढ्याथी न मूंजे ॥ तुरंगधर तुरं गधर साथ ऊपटां लीये, पायचर पायगां संग जूजे ॥ सजे० ॥ २ ॥ वजत शरणाईयां राग सिंधु शिरे, गुहिर निशाण चोसाल गुंजे ॥ पूर रणतूर व वीर जैरव ज पी, युद्ध रस निरखवा जई प्रयुजे ॥ स० ॥ ३ ॥ सु एत रणनाद उनमाद रस पूरिया, देह ससनेह ज्यों द्विगुण फूलें || टक टकी पमे कवच जींचां तणां,
दीयां तिखण रोमांच शूलें ॥ स० ॥ ४ ॥ शस्त्र चिलकार ऊबकार जलनो जिस्यो, गादी यो गयणवर
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