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ई पुर न वसाय ॥ ६ ॥ दुष्ट चरित्रा एहवं, धारी मन मां पाप ॥ कारज व्यवसर परखती, जई बेटी घर थाप ॥ ढाल तेत्री शमी ॥ वीर वखाणी राणी चेलणाजी॥एदेश ॥ ॥
सांज विहाणी पमी रातमीजी, व्यापि घोर अं धार ॥ तग तग्या गगनमां तारकाजी, लाग्या फिर ण निशिचार || सां० ॥ १॥ एकरूपें यया विश्वनाजी, जुजुया वस्तु समुदाय ॥ श्राक्रम्या श्याम अलिकुलस मेजी, तमगुणें आप बल पाय ॥ सां० ॥ २ ॥ खेलता सुररमणी रसेंजी, जेद मधुपान रसलीन ॥ व्यसनर्थ । तेह अल बांधियाजी, कमल काराघरें दीन ॥ सां० ॥ ॥ ३ ॥ लोक निज निज घर विश्रमेजी, वली मट्या मार्ग संचार || तेह समे निसरी गेहथीजी, रहस्य प ो तेह जिम जार ॥ सां० ॥ ४ ॥ अगनी धुवंती ग्रही दाथमांजी, यावी जिदां मुनिवर ते ॥ मूर्त्तिधर धर्म ज्यों थिर रह्योजी, काउस्सग्गे फलकंते देह ॥ सां० ॥ ॥ ५ ॥ पोलिये द्वार पुरनां जड्यांजी, संत व्यवहार विधिमा || जाणे निज नेत्र मख्यां पुरेंजी, जावि मु नि कष्ट मन जाण ॥ सां० ॥ ६ ॥ लोकसंचार नहीं बाहिरेंजी, निरखीयो शून्य वन जाग ॥ दुष्ट कनका लही आपणोजी, साधवा कार्यनो लाग ॥ सां० ॥ ७ ॥
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