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________________ (एए) तुज रूप निहालशे, शील खंगशे ऊठ ॥२॥ सोक धरम माहरे हसे, जनमां वधे कुःखदाय॥खोश तुं कुल वट्टमी, परवश वास वसाय ॥ ३ ॥ नवरस लोजी नाहलो, अवगणशे कुल लाज ॥ श्रावी तुरत जिम ताहरो, विषम सुधारूं काज ॥ ४ ॥ एम कही करतल ग्रही, खग नारी दे धीर॥ निकट नदीजल जर वहे, श्रावी तेहने तीर ॥ ५॥ . ॥ढाल पंटरमी॥ घोगीतो थाई थां॥ रा देशमांमारुजी॥ए देशी॥ ___ गुहीर नदी जल उठले ॥वारुजी ॥ बटके पवन नी बांट हो, मृगा नयणीरा जमर सुणो वातमी, मा रुजी॥ निरखी तट तरु मंगली ॥ वा० ॥ हीयॉ ना खे काट हो ॥ मृ॥१॥ जाणुं हुं एह खेचरी ॥ वा॥हणसे सही इंणि वाट हो॥ मृ० ॥ के तरु माले बांधशे ॥वा ॥के जाशे खिति दाट हो । मृ०॥२॥ के जलपूरे वाहशे ॥ वा ॥ म मन मुज पुःख घाट हो । मृ०॥ तव निरखे ते खेचरी॥ वा॥ सुक्क कठिन एक काठ हो । मृ॥ ३ ॥ वि या बलें ते खेचरी ॥ वाकीधो फानी पुन्नाग हो। मृ०॥ विज कस्यो तस अंतरें ॥ वा०॥ पुरुष प्रमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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