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णे माग हो॥ मृ० ॥ ४ ॥ मुज तनु चरच्यो चंदने ॥वा ॥ करी मृगमद बिरकाव हो ॥ मृ० ॥ अगर प्रमुख शुन्ज वस्तुयें ॥ वाण॥ कीधी मुने गरकाब हो ॥ मृ॥५॥ काठ विवरमां मुज धरी ॥वा॥ ढांके ऊपर फाल हो॥ मृ॥ तदनंतर नखहुं किस्युं ॥वाण ॥गर्न रही जेम बाल हो ॥ मृ०॥६॥ नयणे दीग हवे नाथजी ॥ वा ॥पूरवपुण्य संयोग हो॥मृ॥नृप कहे तुज विरहण मुखें ॥ वा॥ मेलविर्ड ए योग हो ॥ मृ०॥ ७॥ चयमांमी गोला तटें ॥ वा० ॥ वारण मिलिया लोग हो ॥ म०॥पुःख सुख लाने लोकमां ॥ वा ॥ न टले पूरवकृत लोग हो॥ ॥॥मंत्रि कहे तेणे खेचरी ॥ वाण॥शोक सबल फुःख नालि हो ॥ मृ ॥ काठ ज्वल विवरें धरी ॥ वा ॥वहेती करी जल बाल हो ॥मृ०॥ ए॥ मारे ते जो खेचरी ॥ वा ॥ तो विद्या होये आल हो ॥ मृ० ॥ पोहोर दि वस चढते मल्यां ॥ वा०॥ सात पोहोर सवि काल होम०॥१०॥नप कहे मजदयीता तणावा॥ हरण हुई सुख देत हो॥मृ०॥कुलक्ष्यकारी नूतनो ॥ वा ॥ बंध कस्यो संकेत हो ॥ मृ॥ ११॥ देवी जल मंदिर तलें ॥ वा ॥ काठ धस्यो शुजगम हो।
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