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(६१) मृ॥ श्णे अवसर बिरुदावली ॥ वा ॥बोल्यों वे तालीक ताम हो ॥ मृ॥ १५॥ प्रबल प्रतापी वि श्वमां ॥ वा ॥ कमला जासण जेद हो ॥ मृ० ॥ जय जय ते जग शिर ठव्यो ॥ वा० ॥ प्रनुपरें दिन कर एह हो ॥ मृण॥ १३ ॥ मंत्री जणे अवशर लही ॥ वाण ॥पउधारो पुर नाह हो ॥ मृ०॥ नाहण नोय ण पाणथी ॥ वाण ॥ वीसारो सुःख दाद हो॥ मृग ॥ १४ ॥ तहत्ति करी नृप ऊठीयो ॥ वा ॥ आवे नयरी वाट हो ॥ मृ० ॥ शब्द पंच नादेंकरी ॥ वा॥ बीहिना दिसि गज थाट हो॥मृण॥१५॥ मांगलिया जय रव नणे ॥वा॥नाचे गणिका कोमिहो।मृ॥ ये आसीश सोहामणी ॥ वा ॥ गुणीजन होमा होमि हो ।म ॥ १६ ॥ लेतो सहुअ वधामणा ॥ वा० ॥देतो दान उदार हो॥ मृ॥जोतो पुरनां व्य वहारिया ॥ वा ॥ सणगास्या बाजार हो ॥ म० ॥ १७ ॥ नूपति लखनां नेटणां ॥ वा० ॥ ग्रहतो हय गय घाट हो ॥ मृ०॥ सुणतां याचकनी स्तुति घणी ॥ वा करतो अरि मुख दाट हो ॥ मृ०॥ १० ॥ मंदिर पोहोतो महिपति ॥ वा ॥ नेटे निज परिवा र हो ॥ म ॥ सचिव प्रमुख नमी नूपने ॥ वा० ॥
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