SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३८ ) ए॥ १७ ॥ फाटे हीयरुं मु रे, धीरज सहुं नहीं, कदेतां वार मलावी येए ॥ वेगवती तव ऊठी रे, रमती इंम कहे, है सुं दुःख उदजावी यें ॥ १८ ॥ कदेवा सर खी वात रे, नहीं हो साहेबा कहेतां न वहे जीजमी ए, वीर शिरोमणी देव रे, रुदय कठण करो, वज्र वि म बे वातमी ॥ १९ ॥ चंपकमाला देव रे, प्रभु ऋदयें सरी, दाहिए लोयण फुरकंतेए ॥ वेला गालण काज रे, चिंतातुर जमी, बाहिर अंतर जत ततेंए ॥ ॥ २० ॥ लहति र ति अपार रे, मंदिर यावीने, सूती एकांते जईए ॥ मुजने पान निमित्त रे, मूकी हूं पण, पान लई पाठी गईए ॥ २१ ॥ बोलावी जर दे ज रे, मुख बोले नहीं, दीठी काठ परें पीए ॥ जीव रहित निश्चेष्ट रे, जांखी देहमी, मीचाणी दोय यां खमीए ॥ २२ ॥ के सोसी कुंए प्रेत रे, के साकि ग्रसी, के कां सापणी मसी गईए ॥ अथवा उत्कृष्ट रोग रे, जीव लेई गयो, के निज हत्या करी मुईए || ॥ २३ ॥ निरखी माग सूल रे, परियो भ्रासको, पण न कलाय ए सुं थयुंए ॥ आई दोमी एथ रे, शुद्धि स वे गई, जीवमलो कभी गयोए ॥ २४ ॥ वयणसुणी भूपाल रे, करुया विष जिरयां, मूहगत धरणी ढ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy