SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३७ ) सिंहासन जई बेसियो ए ॥ फिरिफिरि फरके नयण रे, राणीनो वली, तिमतिम थरके तस हीयोए ॥ १० ॥ मंदिरमांथी उठी रे, व निकामां गई, अरंति लड़े ति पण घमी ॥ वनिकामांथी तेम रे, यावी मंदिरे, त्यां थी बाहिर वन जणी ॥ ११ ॥ वनथी पुरमा आई रे, सहियर परवरी, देवकुलें जावे वली ए ॥ न लहे र ति लवलेश रे, क्लेश सहे घणु, जिम शूके जल मा बली ए ॥ १२ ॥ इम वोल्या मध्यान्ह रे, यावी निज घरें, सूती पण मन वाउलोए ॥ अल्प अल्प तव निंद रे, आवी तिणे समे, जेह थयो ते सांजलोए ॥ १३ ॥ वेगवती नामेण रे, दासी तेतलें, हाथांसुं शिर कूटती ए । शुधार प्रवाह रे, मारग सिंचती, केश चटा चट चुंटती ॥ १४ ॥ विलवंती दुःखपूर रे, यावी दोमी ने, राय कन्हे रोती घणुए ॥ हा हा शुं थयो तुझा रे, सामणि माहरी, दीधुं दैव विगोवणु ॥ १८५ ॥ फिटरे धीवा दैव रे, श्म कहीं ढली पमी, निरखी च क्यो नृप चिंतवेए ॥ आपद दीसे कांय रे, राणीने पकी, हा हा सुं कर हवे ॥ १६ ॥ उठ्या व्याकु ल राय रे, दीनवदन थई, पूढे दासीने इस्युंए ॥ ऊ ऊठ ऊठ रे, कढ़ेने सुं ययुं, सूल यंतेरनुं किस्युं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy