________________
(३६) उसरीए ॥२॥ फरके जमणी आंख रे, प्रीतम मा हरी, कुंण जाणे से कारणेए ॥ नावि को अनर्थ रे, फरि फरि सूचवे, मुज मन न रहे धारणेए ॥ ३॥ था शे को उतपात रे, नूतादिक त, फुःखदाई मुजने सहीए ॥अथवा विद्युत्पात रे, थाशे मुज शिरे, के उलका पम्शे वहीए ॥ ४ ॥ के जासे सर्वस्व रे, जी वन माहरो, कुशल होजो तुमने सदाए ॥ के थाशे मु ज राग रे, शोक अशुन्न कर, के पनशे कांश आपदा ए॥५॥ प्राण तणो संदेह रे, होशे माहरे, निश्चय लोचन एम कहेए । हुं नवि जाणुं कांश रे, गोली नामिनी, दैवगति ज्ञानी लहेए ॥६॥ रति नाठी मु ज तेण रे, हर्श कम कमे, अधृति धरुंलु काहिलीए ॥ वीरधवल नूपाल रे, वलतुं एम वदे, कां जामिनी फुःखमां जलीए ॥ ७॥ चिंता म करिस लगार रे, मु ज बेगं किसी, शंका शंकटनी कहेए॥रवि तपतेथ तितीव्र रे, तिमिर जरम समो, लोक मांहे केम थिति लहेए ॥ ॥जो होसे तुज कांश रे, बाधा अणजा णी, विरह व्यथा फुःख कारणीए। तो मुजने तुज सा थे रे, शरण अगनी तणो, होशे सही सुण नामि नीए ॥ ए॥णीपरें धरणी नाहरे, श्राश्वासी प्रिया,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org