________________
(३५)
ही, बोले मण मण बोल ॥ ३ ॥ शुजग शिखा शिर फरहरें, धूलें धूसर देह ॥ लघुदंता खर्के पके, हेलवी या करि वेह ॥ ४ ॥ सुतविण उंचां मालियां, प्रत्य द खरा मसाण || निजकुल कमल विकाशवा, पुत्र क ह्यो नव जाण ॥ ५ ॥ में पाम्यो नहीं एक पण, धि
धिग मुज अवतार ॥ पुत्र विदुषी दुःरकणी, कांस रजी किरतार ॥ ६ ॥ पूरव पूण्य किया विना, क्यां श्री संतति होय ॥ सुकृत करीजें दुःख तजी, ते जणी आपण दोय ॥ ७ ॥ चींता दूरें बोमियो, दय थकी दे कंत ॥ पुत्र देतें याराशुं देव कोई सतवंत ॥ ८ ॥ प्रसन्नथयो सुर पुरशे, वंबित नवलो एह ॥ सुरसेवा सा ची करी, निःफल न होवे केह || || राय कहे सुरा सुंदरी, मुजमन जावी वात || शुभदिनी खाराधशुं, कोइक सुर विख्यात ॥ २० ॥
"
ढाल दशमी ॥ राजाने परधान रे ।। ए देशी ॥ ॥ ति अवसर नृप नारि रे, वली बोले इश्युं, धर ते दिलमां दुःख घणुं ॥ वंदन थयुं विधाय रे, चिंता उमटी, दीसे अंग दयामकुंएं ॥ १ ॥ थरहर थरके गात्र रे, विनय विव्हल थई, चटपट लागी आकरीए ॥ रति नाठी संताप रे, व्याप्यो पारीज, चतुराइ पण
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Educationa International