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यति जलहल ज्योति, जलके अंबर तल लगेंजी ॥ १० ॥ रुषन प्रभु राजे दे, मोहन जिहां जगनो ना थ ॥ देखी मणि मूरत खास अंतर आतम उल्लस्यो जी ॥ १५ ॥ कीधी स्तुति मोटी दे, ललित पद अर्थ गंजीर ॥ लागो जिनसुं एकतान, दुःख सयल मनथी खिस्योजी || २० ॥ कांतें कही रुमी है, सरस ए तेरमी ढाल || मीठी जिम साकर प्राख, सुणतां काने अमृ त वस्योजी ॥ २१ ॥
॥ दोहा ॥
॥ विधिविवेक पूर्वक पणें, कीधी में जिन सेव ॥ जगति निरवी दरखित थई, बोली शासन देव ॥ १ ॥
शासन रखवालिका, चक्केसरी मुज नाम ॥ श्र दि जुवन रक्षा करूं, मलयाचल शुज वाम ॥ २ ॥ म लय देवी मुज नाम बे, बीजुं ठाण गुणे ॥ सादमी धर्म जणी चरण, प्रणमुं हुं तिथे एए || ३ || कठिण ही युं करी कामनी, मनमां कां म बीह || पके अव स्था माणसा, न टले सुख दुःख लीड़ ॥ ४ ॥ पूब्युं में कड़े मावमी, किणे आणी मुज श्रांहिं ॥ कहियें स वि निरत्तसुं तव सा बोली त्यांहिं ॥ ५ ॥
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