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(200) ॥ दोहा ॥ ॥ रुद्रा जड़ा नारिनें, शोक्याने पिउ साथ ॥ म हा कलह एक दिन हुर्ज, तेणें निभृंबी नाथ ॥ १ ॥ शोक्य धरम जगमां निपख, साले साल समान ॥ स हे मरण पण नवि सहे, शोक्योमां ापमान ॥ २ ॥ धिग धग जीवित आपणुं जनम निरर्थक कीध ॥ कलह ले नहीं को दिनें, हग पणे पिठ दीध ॥ ३ ॥ यथाशक्ति दानादिकें, कीधां परजव क ॥ मरण श रण हवे यादरी, नांखां दुःखशिर रत ॥ ४ ॥ एक मनी बे बेहेनमी, चिंती एम एकांत ॥ बानें जई कूवे पमी, करवा दुःख विश्रांत ॥ ५ ॥
॥ ढाल सत्तावीशमी ॥ नायतानी देशी | ॥ रुद्रा मरण तिहां लही, जयपुर नृप श्रीचंदपाल रे लाल || तेहने घर पुत्री पणे, थई कनकवती इति बाल रे लाल ॥ ॥ १ ॥ जांखे गत जव केवली, निसु प रषद धरी कान रे लाल ।। वैर न करशो केहथी, जो होय हियमे कांई शान रे लाल ॥ जां० ॥ २ ॥ वीरध वल ईणे राजिये, परणी ते प्रेम रसेण रे लाल ॥ जड़ा मरी थई व्यंतरी, बीजी परिणाम वशेष रेला ल ॥ जां० ॥ ३ ॥ जमती ते वन व्यंतरी, एकदिन
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