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( २० )
पुर पृथिवीवा रे लाल ॥ यावी देखे विलसता, प्रि यसुंदरी प्रियनें टा रे लाल ॥ जां० ॥ ४ ॥ देखी वै र संना रियुं, कोपें कलकलती चित्त रे ॥ लाल ॥ सुतां वि हूं ऊपर जई, नाखे निशिमां घरजिं ति रे लाल ॥ जां० ॥ ॥ ५ ॥ शुभ परिणामें दंपती, तिहां पामे मरण का द रे लाल || प्रियमित्र जीव ए ताहरो, थयो पुत्र महाबल बाल रे लाल || जां० ॥ ६ ॥ प्रियसुंदरीनो जीव ते, हुई मलयसुंदरी ए बाल रे लाल ॥ वीरधवलनी नंदनी, तुज सुत दयिता सुकुमाल रे लाल || जां० ॥ ॥ ७ ॥ मलयायें तुज नंदने, परजवें जे बांध्युं वैर रे लाल ॥ रुद्रा नद्रा नारिशुं तस फल इहां लाधां घेर रे लाल ॥ ज० ॥ ७ ॥ पूरव वैर संजारती, तेह असुरी अवघें जाए रे लाल || महबलनें दसवा वली, रस मांगे जयम आए रे बाल ॥ जां० ॥ ए ॥ पुण्य प्र जावें एहनें, न सकी कांई करण निष्टरे लाल ॥ सू तो निशि देखी गृहें, करती उपसर्गह पृष्ट रे लाल ॥ ॥ ज० ॥ १० ॥ वस्त्र विभूषण कुमरनां, हरियां णे क्रोधें व्याप रे लाल || वट कोटरमां मूकीयां, लाधां ते कुमरनें आप रे लाल ॥ जां० ॥ ११ ॥ प्रथम मि नमें पिछे, कायें कुमरनें हार के लाल ॥ लख
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