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________________ P (ए) सघला ते व्रत पाल ॥ सुरलोकें थया देवता हो साधु, संलेषण संजालि रे॥हो ॥१५॥ महाविदेहें सिऊशे हो साधु, कर्मतणो करी नाश ॥ अक्षय श्रव्याबाह नुं हो साधु, लहेशे पद सविलास रे ॥ हो० ॥१३॥ चोथे खंमें त्रीशमी हो साधु, ढाल कही श्रनिराम ॥ कांति विजय कहे माहरो हो साधु, ते मुनिने होजो प्रणाम रे ॥ हो ॥४॥ ॥दोहा॥ ॥जगिनी पति नगिनी प्रत्ये, बापूजी अति प्री ति ॥ आवे श्राप पुरे वही, मलयकेतु वझरीति॥१॥ सागर तिलकपुरे ठवी, सेनानी निनंग ॥ महबल आवे निजपुरे, शतबल सुत लेई संग ॥२॥ पाले रा ज्य महाबली, गाले अरियण मान ॥ सेवे श्री जिन धर्मने, सकुटुंबो महिराणं ॥३॥ ॥ ढाल एकत्रीशमी ॥ मयणरेहा सती ॥ ए देशी॥ ॥ते व्यंतर साहायथी रे हां, महबल देश अने क॥ साधे महाबली ॥ श्रीजिन वचनां धर्मनी रेहा, करे महोन्नति एक ॥ सा०॥१॥ पुरपाटण संबाहणे रेहां, थापी जिण प्रासाद ॥ सा॥ करे चक्ति मुनि वर तणी रेहां, बॉमी पच प्रमाद ॥ सा० ॥२॥बी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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