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(२०ए) राधे जिनधर्म सुटेकें ॥चोथे खंमें चोथी ढाला, कांति कहे रहे सुखमां बाला ॥ जी० ॥ १४ ॥ इति ॥
॥ दोहा ॥ एक दिवस नूपति नणे, मलयाने धरी रागन छे मुजने आदरी, कीजें सफल सोहाग॥२॥ पट्ट बं ध तुजने घटे, नहीं अवर त्रिय लाग ॥ उचित हेम मय मुखिका, ग्रहवा मणि पर नाग ॥ ॥तुज वच नामृत चंपिका, चाहुं जेम चकोर ॥ बीजी दयिता मोजमी, तुं शिरशेखर गेर ॥ ३ ॥ नेह कदे रस दे नहीं, कीधो एक पखेण ॥ बे पख निवहे रस दिये, जिम रथ चक्र युगेण ॥४॥ मुज मन लागुं तुज शुं, वायुंही न रहंत ॥ कोमि विकल्प कदर्थना, लत्ता पात सहंत ॥५॥जो मन जाएये आदरे, तो रस व धतो होय ॥नहीतो पण जे मुज वसू, हीये विचारी जोय ॥ ६ ॥ जाश्श कीहां पाने पमी, नहीं नूढुं हवे दाव ॥ हसतां रोतां प्राहुणो, एहवो बन्यो बनाव ॥ ॥॥सा चिंतेधुर जे ठवी, नानीहीये निघट्ट ॥वचन गमें ते पुष्टता, नूपें करी प्रगट्ट॥॥धिग मुज यौवन रूपनें, लवणिम पमो पयाल॥पग पग जास पसायथी, सडं लाख जंजाल ॥ ए॥बूमीकां नहीं जलधिमां, ऊ
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