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ढाल रसाल रे, कांति विजय कहे, मोहें नमिया जल
जलाए ॥ ४७ ॥
॥ दोहा ॥
॥ रे रे ल्यावो धाइने, विषधर औषध यंत्र ॥ श्रामं त्रो मंत्रिक प्रतें, धारे विष मणिमंत्र ॥ १ ॥ नृप आ देशे मेलवी, सामग्री ततकाल ॥ यरंने मांत्रिक क्रि या, उचित कद्या सवि चाल ॥ २ ॥ एकांते देवी ग्वी, करे चिकित्सा तेम ॥ मांत्रिक मंत्री सर सहित जाणे नृप जेम एम ॥ ३ ॥ हमणां देवी ऊठसे, करशे ने त्र विकाश ॥ दवणां कांइक बोलशे, वलशे वली उ सास || ४ || वोली एम नृप चिंततां, अर्द्ध दिवसने रात्र || सचिवादि निरुपाय सवी, करे विचार प्रजात ॥ ५ ॥ नृपने केम उगारसुं, मरण दिशाथी आज, नेह ग्रस्यो जाणे नहीं, करतो चतुर काज ॥ ६ ॥ राज्य देश गढ सुंदरी, सेना लोक हिरण्य ॥ सचिव प्रमुख दिन आजयी, सकल यया अशरण्य ॥ ७ ॥ इम चिंता सायर पड्या, मंत्रीसर जयवाम ॥ एक ए क साहामुं जूवे, जिम मृग चूका गम ॥ ८ ॥ दीवी कांता ति समे, पूर्वपरें नृप श्राप ॥ डुःकसुं, इणिविध करे विलाप ॥ ए ॥
पूरयो यति
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