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॥ दोहा॥ ॥ वनगिरि गुहिर पुर नगर, निसदिन तेह लमं त ॥ पग पग पूरे पंथमें, पण खबर न कोई कहं त ॥१॥ विकटपंथ श्रमथी पम्यो, मांदो तेह स हाय ॥ मूकी कोश्क नगरमां, कुमर चल्यो असहा य ॥२॥ पुर अटवी उखंघतो, पोहोतो एकण दे श ॥ निरमानुष मोटो तिहां, (मनुष्यनी वस्तिविना नो) दीगे नगर विशेष ॥ ३॥ उंचां मंदिर जलहले, जाणे गिरि कैलास ॥ गम गम सुंनी पमी, मणिमा णिकनी रासि ॥४॥धानपंज पंखी चणे, वस्त्र उ मामे वाय ॥ श्रीफल फोमीने वानरां, खांत करीने खाय ॥ ५॥ त्रूटा ध्वज धरणी पमयां, ढोल्या मदिरा माट।फूल पगर बाबे नयां, सुंना दीसे हाट ॥६॥ कुमर तव विस्मित पणे, कीधो नगर प्रवेश ॥ दीगे नर तिहां एक अति, सुंदर तरुणे वेश ॥ ७ ॥ बोल्यो तरुणो कुमरनें, कुण तुं महानाग ॥ याव्यो कि हाथी किहां रहे, साचो कहे अम आग ॥७॥ कु मर कहे सुण माहनां, हुं पंथी असहाय ॥ पंथकरी थाको घणुं, थाव्यो बुं इंणे गय ॥ ए ॥ तुं कुंण दीसे एकलो, बेगे ले किण काम ॥ रुछिनरी सुनी
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