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________________ ( १८ ) किसें, कुण नगरीनुं नाम ॥ १० ॥ ततक्षण नर बोल्यो इशुं, सुण बांधव गुणवंत ॥ मूलथकी कहुं मां मीने, सकल परें विरतंत ॥ ११ ॥ ॥ ढाल बही ॥ कपूर होये प्रतिजजनुं रे ॥ ए देशी ॥ ॥ कुशवर्द्धन पुर ए जलं रे, स्वर्ग पुरी उपमान ॥ राजासूरें शोजतो रे, दिन दिन चढते वान || सुगुण नर सांजल मोरी वात ॥ १ ॥ पुत्र हुआ बे सूरनें रे, जयचंद्र ने विजयचंद्र ॥ बे बांधव वाला घणुं रे, कुवलयने जेम चंद्र ॥ सु० ॥ २ ॥ मुज बांधव जय चंद्रने रे, ताते दीधुं राज || लागे लाब्यो हुं रहुं रे, न लढुं काज काज ॥ सु० ॥ ३ ॥ स्वर्गे तात स धारियो रे, मुज मन बेठी चींत || सघला दिन नहिं सारिखा रे, जग सहु एम कहंत ॥ सु० ॥ ४ ॥ बां धव आणा किम बहूं रे, आणी एम अंदेश ॥ श्र जिमाने दुंनी सरयो रे, जोवा देश विदेश ॥ सु०॥ ५ ॥ जोतो जोतो नवनवा रे, देश विदेश चरित्त ॥ एक दि वस चंद्रावती रे, पुरी वन मांहे पहुत्त ॥ सु० ॥ ६ ॥ सोम्य सुरूप सोदामणो रे, कोइक विद्या सिद्ध ॥ दीगे नर में ततखणें रे, प्रणपति विनयें कीध ॥ सु० ॥ ७ ॥ पीमा तनु तस आकरीरे, रोग विकट अतिसार ॥ क्षी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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