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(१६) कहंत ॥ श्ष्ट मनावो कोई कहे रे, मंगल को विरचंत रे ॥ता ॥ १० ॥ एक कहे धूणावीयें रे, एक कहे दीजे मंज ॥ एक कहे शिर {मीने रे, करिये तंत्र अचंज रे॥ ता ॥ २१॥ एक कहे जल गंटीयें रे, मंत्री एहने अंग ॥ एक कहे ए यंत्रथी रे, थासे पहला चंग रे॥ ता॥१२॥ एक कहे ग्रह पूजिने रे, करसुं साजा श्रांहिं॥ एम अनेक शब्दे करी रे, कोलाहल ह त्यां हिं रे ॥ ता० ॥ १३ ॥ उद्यम सवि निःफल थयां रे, को न आव्यो तंत ॥ रणनी ऊखर नूमिका रे, जिम जलधर वरसंत रे,॥ता॥१४॥ जिम जिम युगति उपच स्या रे, तिम तिम वाधे वीमसायर जल उमा जि हां रे, तिहां वमवानल नीम रे॥ ता॥१५॥ पुर्ज न परे मंत्रादिकें रे, कीधा तेद निरास ॥ऊठी गया निज निज थले रे, साथ मनोरथ तास रे॥ता ॥१६॥ कुमर इस्यो मन चिंतवे रे, उठी जेहथी बाग॥समसे तेहथी तहने रे, आणु उद्यम लाग रे ॥ता॥१७॥ उपलक्षक साथें लीन रे, तव नर एक सखाय॥चाल्यो नर सोधण नणी रे, कुमर करी चित्त गय रे॥ताणार॥ सेठ रह्या बांध्या तिहां रे, करशे कुमर सहाय ॥ ढाल कही ए पांचमी रे, कांतिविजय सुख दायरे ॥ताणारए॥
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