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________________ ति उन्धक पंथी थयो, साचो चालण संच ॥ तुंबी मा गी ते कन्हें, विनय वचन परपंच ॥२॥ मायावी मृड वचनसुं, बोट्या बे मुरबुद्धि ॥ व्यग्रपणे तुज तुंबिनी, कीधी कां न सुधि ॥ ॥ उछत उंदर श्राफले, ग म गम प्रचंम॥ काढ्यो बंधण तुंबिका, पमी थर श तखंग ।। ए॥कोश्क दिन तसु कटकमा, दीठा पम्या अनेक ॥ श्रम दिलमें अति पुःख हुर्ज, चिंताये व्यति रेक ॥१०॥समसगरांकरी साचज्यु, कृतिम करे फुःख लार ॥ अपर तुंबीना खंग ले, देखामया तेणी वार ॥ ॥ ११॥ वैदेशिक विलखो थयो, खोइ सघली श्राथ। हाहा दैव किशु कीयो, नूमि पमया बे हाथ ॥ १२॥ दक्ष पणे जाएयो तेणे, ए नहीं तेहना खंम ॥ जिम तिम तुबी उलवी, सम काढे लंग ॥ १३ ॥ किहां जालं कहने कडं, किशो करुं हुंसूल ।। दगो दिळ उष्टें बुरो, लीधो तुंब अमूल ॥ १४ ॥ कहुँ कदाचित राय ने, तोपण रस ले तेह ॥चिंति चुंपे चित्तमें, श्म बोले गुण गेह ॥ १५ ॥ ॥ ढाल चोथी॥ विडियानी देशी॥ ॥ मोरी तुंबी दी शेठजी, इंतो कहुंडं गोद बि गय रे॥ काम न कीजें कांश तेहवो, जेणे मान महा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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