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________________ (१०) यो, ए तुंबी मुज लीजे रे ॥ पाली देजो शेठजो, जि ण दिन फरी मागीजे रे ॥ धि ॥ १५ मुखमुखा गाढी करी, शेठ तणे कर दीधी रे॥ऊंची बांधी तुंब मी, हाट मांहे तेणे सीधी रे ॥ धिम् ॥ १३॥ बे नाश्ने तेणे कह्यो, करजो एहनी संजाल रे ॥ ते कहे हुँ जीव न समो, एह ने तुमचो माल रे॥धि०॥१४॥ चतुर विदेशी चूकी, रोप्यो अनरथ मूल रे॥ कांति विजय कहे ढाल ए, त्रीजी थश् अनुकूल रे॥ धि०॥ १५ ॥ ॥दोहा शोरेगी। ॥ तुंबी लागोताप, अवर वस्तुनो आकरो॥ वाध्यो रसनो व्याप, जरवा लागी जटकसुं ॥ १॥ दोहा ॥ तुंबीमाथी रस गली, हेठ बंधायें बंद ।। खोह कोश नीचे पमी, सिंचाणी निरमंद ॥२॥ लोह दिशा लघु बगंमी ने, हेमंदर्जु गुतिमंत | हाट कोण जलिमलि रह्यो, मोड्यो तिमिर तदंत ॥ ३॥ दृष्टि पड्यो दो सेग्ने, सो वन साचे रंग ॥ चमत्कार चित्त पामी, जाएयो रस नो संग॥४॥ अतिलोने बांधा हया, तुंबी ले नि स्संक ॥ गुपत पणे मूकी गृहे, न गएयो काल कलंक ॥ ॥ ५॥ मायावी मन हरखीया, लोनें वाह्या लुंग ॥ कुलवट वहेती मूकीने, कीधो कारज लुंग ॥ ६ ॥थ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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