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(१३६) णां ॥ ए॥ रातसूधी ते नीरमां ॥ गु०॥ जाशे तरतो जूमि कीती॥देशृंवम जंजीरमां॥ ज० ॥ग्रहिशुंकरशे जेय थिती ॥ १० ॥ जाशे ए किहां वेगलो॥ गुण ॥ चोटी एहनी हाथ अडे ॥ हमणां मूक्यो मोकलो॥ उ ॥ लेशे फल रस पाक पढें ॥ ११॥ श्म कहेतां मन आमले ॥ गुण ॥ चोर गया निज काज वगें ॥ यत न करी में एकले ॥ ज० ॥ राख्यो न प्रजात लगें॥ १२ ॥ प्रहकालें जण नूपनो । गु० ॥ श्राव्यो निरख ण थंन तिहां ॥ हुं थअलख स्वरूपनो॥ ॥बेठगे आवी डे लूप जिहां ॥ १३॥ इत्यादिक वीती कथा ॥ गु० ॥ कहीने वली महाबल नणे ॥ काढुं चोर तेस र्वथा ॥ १०॥ शिखर ठव्यो जे नुवन तणे ॥ १४ ॥ चालीश जो हुँ निजपुरें ॥ गु॥तोमरशे तिणें नीम पड्यो ॥ चढशे पाप खराखरे ॥उ०॥३णे फिकरें मुज चित्त नड्यो॥१५॥तुंहारहेजे हुं वही ॥गुण॥आवी श तेहनो सूल करी ॥कहे मलया रहेशुं नहीं॥०॥ साथै श्रावीश रंग धरी ॥ १६ ॥ तव कुमर विचारी चि त्तमां ॥ गु० ॥ वेगवतीने एम नणे॥जो नृप आवे तुर तमां ॥ ज०॥ तो कहेजो इंम निपुण पणे ॥ १७ ॥ गोलातटें देवी नमी । गुण ॥ श्रावशे कुमर शहां ह
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