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(२३०) अति विस्मित वसुधाधवें, पूज्यं नाम निवेश॥ सिक पुरुष इति तेहनी, निज कहे नाम निर्देश ॥३॥ जि मी नहीं गत वासरें, विरची बाला एह॥उचित जमा मो तेह नणी, कहे नूप ससनेह ॥ ४॥पय पाकुं सा कर रसें, पावे कुमर सहाथ ॥ स्वस्थ हुई वातो करे, ते नृप सुतनी साथ ||५॥ ॥ ढाल दशमी ॥ पंथीमा रे संदेशमो॥ए देशी॥ ॥ कुमर लणे नूपति प्रत्ये, करो शीख सुजाण ॥ द्यो मलया मुजनें हवे, पालो वचन प्रमाण ॥ १ ॥ टुरे विदेशी पंथियो, न सहुँ ढील लगार, ॥ मुज मन छ ग्युं हांथकी, चालण निरधार ॥ हुं० ॥२॥ कांश विचारो राजिया, करो कोकि विषाद ॥ रुसवा थाशो लोकमां, मूक्यां मरयाद ॥ हुं० ॥ ३ ॥ रवि जलधर जलनिधि शशी, मूके नहिं स्थिति आप ॥ तिम नृप पण नवि उबपे, कुलवट स्थिति थाप॥ हुं ॥४॥
आपो मलया एहनें, था राजि प्रसन्न ॥ दंपती पुः खियां मेलवी, करो सत्य वचन्न || हुं. ॥ ५ ॥सम जावे इंम नूपनें, पुरनां लोक समस्त ॥ श्रापूस्यो ते सांनली, कोपें मदमस्त ॥ हुं० ॥६॥ क्षण एक श्र ण बोल्यो रही,मांमे बीजी वात॥है है नितुर पणा
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