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________________ (१४७) व्यो नरपति हुंकारी, एह वात हवे अवधारी ॥१३॥ अणदीगं मुज नंदननां, वसनादिक लीधां तननां लोजसार नामें जेणे चोरें, रहे ते गिरिकंदर तोरें॥ ॥ १४ ॥ चोख्यो पुरनो जेणें माल, पकड्यो ते माटे हवाल ॥ काले तस निग्रह कीधो, तस बांधव दीसे ए सीधो ॥ १५॥ निजबंधु वियोगें बलतो, सुधि लेवा आव्यो चलतो । पहेरी मुज सुतनो वेश, इंणे पुरमा कीध प्रवेश ।। १६ ॥ मुज सुत हणी श्णे मलीने, मुज वैरी ए अटकलीने ।। लोनसार कन्हें जईहणजो, शहां पाप किस्युं मत गणजो॥१७॥ मलया मनमा म ध्यावे, असमंजस कर्मनें दावे ॥प्राणांतिक आपद मोटी, दीसे इहां वली खोटी।। १०॥ चिंतवती पूर्व सलोक, रहीमौन धरी अतिशोक ॥तव बोल्यो सची व विचारी, महाराज जुवो अवधारी ॥रए ॥ जिम साह नहीं ए साचो, तिम चोर करी मत खांचो॥श्रा चरणा दीसे रूमी, शिर आवी तो मति कूमी ॥२०॥ शहां उचित करावोधीज, होये शुछ अशुद्ध पतीज॥ श्म करी हणशो तो आओ, कोई दोष न देशे पाले ॥१॥ नृप कहे शी धीज वतावो, तव ते कहे सर्प मंगावो । साचो घट सर्पनी धीजें, होशे तो चरण न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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