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(३५) जीहो निर्णय जल तूंबी जरी,जीहो बेगे मांची संच॥ जीहो कई बाहिर काढी, जीहो पें त्यांथी खंच ॥ ॥ कुम० ॥ १३ ॥ जीहो अती साहसथी रीजी, जी हो तव कूश्नो देव ॥ जीहो प्रसन्न प्रगट श्रावी रह्यो, जीहो आगल करवा सेव ॥ कुम॥१४॥जीहो अश्वरूप कीधो सुरें, जीहो बे बेग तस पीन॥जीहो श्राव्या पुर चंडावती, जीहो थंच्या बेहु दी॥ कुम ॥१५॥जीहो कुमरें जलसुं सिंची, जीहो लोनाकरनो अंस ॥जीहो जटक बूटी अलगो रह्यो, जीहो पास थ की जिम हंस ॥ कुम० ॥ १६ ॥जीहो लोननदी बूटो नहीं, जीहो पामे मुख पोकार ॥ जीहो पुत्र विना को ण तेहने, जीहो फुःखथी बोमण हार ॥ कुम॥१७॥ जीहो विजयचंपने वीनवी, जीहो गुणवम्, ते शेव॥ जीहो घरमांहे पेसण दी, जीहो बीजा शिर रही वेग ॥ कुम० ॥१७॥जीहो मंत्री पद मुखा नणी, जीहो आमंत्रे नरपाल ॥ जीहो गुणवा नवी था दरे, जीहो जाणी पाप कराल ॥ कुमा॥१॥जी हो केतेक दिन पूंखें नृपें, जीहो निजपुर कीध प्रया ण ॥जीहो विरहव्यथा हीयमे वधी, जीहो कुमरसुं बांध्या प्राण ॥ कुम० ॥२०॥जीहोकरी सरकार अनेक
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