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________________ (३१) हो एक सिंगगिरि नाम ॥जीहो देवाधिष्टित ने तिहां, जीहो कूई एक सुगम ॥ कुम॥५॥जीहो गुप्त र हे गिरि कूपिका, जिहो सुरसानिध दिन रयण ॥ जी हो क्षण मले क्षण ऊघमे, जीहो तस मुख जिम नर नयण ॥ कुम॥६॥ जिहो सिकोषध जल तेहy, जिहो पूर्ण हि लहेरां खाय | जिहो काम पमे विद्या निलो, जिहो कोश्क लेवा जाय ॥ कुम०॥ ७॥ जिहो उत्तर साधक शिर रहे, जिहो साधक पेसे त्यांहिं॥ जिहो जल लेश्ने नीकले, जीहो जो न मरें दिलमांहिं कुम० ॥॥॥ जीहो ते जलनो महिमा घणो, जीहो नांजे जीम निदान ॥ जीहो थंन्यो नर बूटे सही, जीहो जो सुत बांटे आण ॥ कुम० ॥ ए॥ जीहो जेहने सुत नहीं आपणो, जीहो ते नर नवि बूटंत ॥ जीहो वार तीन बांटे सही, जोहो बंधन चट विघटत ॥ कुम०॥ १० ॥ जीहो कारण ए बूटा तणो, जीहो एहनो अन्य न को य ॥जीहोश्रारति कुमरें अनुमन्यो, जीहो मुकर का रज जाय ॥ कुम०॥ ११॥ जाहो सामग्री सुसहा यसुं, जीहो कुमर गयो गिरि शुंग ॥ जीहो आप कूई मां उत्तरे, जीहो जिम पंकज माहे भुंग ॥ कुण्॥१२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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