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________________ (२१७) तीखो लागो ते तदा, जिम बावलनो जीट ॥ १ ॥ मलयकुमरी ऊपर दूजे, रोषारुण नूपाल ॥ मंमावे तन तर्जाना, दिन दिन बरे हवाल ॥२॥ तामे ताते ताजणे, मारे लाठी लात॥मुक्की वली चूकी दीये, पामे नामी घात ॥३॥ घरसे कर्कश नूतलें, आकर्षे पग बंध ॥ हर्षे पर्षद निरखतें, धर्षे दे पग खंध ॥ ४ ॥ सिंचे नीचे कूपमा, निहणे पूंठि निबंध ॥ मोटे सोटें चोटीने, नर्म करे तन संधि ॥५॥नृपसुत श्म तामी जतो, चिंते है किरतार ॥ कहीयें हांथीनीसरी, ल हीशुं पुःखनो पार॥६॥एक दिवस निघावशें, पड्यो निरखी पुहरात ॥ रहस्यपणे पुर बाहिरें, वहे कुमर मधरात ॥ ७॥ पथिशालायें वीशम्यो, धरी मरण मन श्राश ॥ दीगे लमत शहां तिहां, अंध कूप तस पा स ॥७॥ तस कंठें उनो रही, चित चिंते दिलगीर॥ परशुं जो कर नूपनें, तो दहेशे बे पीर ॥ ए॥शरण नहिं महारें इहां, मरण विणा को उर ॥ष्ट संजारी थापणो, म बोली तिण गोर ॥२०॥ ॥ ढाल सातमी ॥ उधवजी कहेशो बहु न . कहि । ए देशी ॥ - ॥ प्रजुजी फुःखणी कांडंसरजी॥ए आंकणी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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