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________________ (१७) पीयु विरहो तीखी कातरणी, काटीकरे हिय पूर जी॥ प्रीतम विण न शके को सांधी, लाख मले जो दर जी । प्रनु॥१॥वाहालानो मुज देवीगे, दुःख सं कटमा नाखी ॥ नाग्य रहित ज्यां त्यां हुं लटकुं, मधु जूलि जिम माखी॥प्र०॥॥दैव अटारा महाबल साथें, ए लव दीधो वियोगो । परजव कंत पणे मुज तेहनो, मेलवजे संयोगो ॥ प्र० ॥३॥ कूया शिरज जी नररूपें, देती श्म उलंना॥सका हश् कूपें ऊंपावा, प्रेम जरी निरदंना ॥प्र०॥४॥एहवे त्यां दयिताने जोतो, महबल ते दिन शेषे ॥ पहियशालमां रातें सूतो, निंद लही नवि लेशे || प्र॥५॥हवे जाएं जोवा दिशि केही, इंम चिंतवतो जागे॥मलयायें जे दीया उलंना, ते कानें जई वागे॥प्र०॥६॥ एह थ पूरव वचन प्रियानां, सरखा सुणतां लागे ॥ प्राण त्यागनां सूचक प्राहें, पमबंदे नज मागे ॥१०॥७॥ संज्रमथी जव्योत्यां नमकी, कहेतोम मुख वाणी ॥ विफल महा साहस रस खेलें, मरण लीये कां ता णी ॥ ॥ ७॥ शरण हजो मुज महबल पीयुनु, म कही ऊंपा दीधी ॥ कुमरे पण तस पू- तिमहि ज, ते अनुचरणा कीधी ॥प्र०॥ए॥ स्फुट चेतन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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