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(१६) जेहवु देखो, तेहवो बुं हां शुं लेखो हो ॥ जू० ॥ ॥ १६ ॥ नहिं खेचर अणुहारो, सिक साधकथी पण न्यारो हो ॥ ॥ मलयानां श्णे उमही, पहेस्यां
पट ते तिमही हो ॥ नू० ॥ १७ ॥ में रति रस मागंतें, नर रूप धां कोई तंतें हो ॥४०॥ जाएंम लया एही, बेठी बलवाने सनेही हो ॥ नू०॥ २० ॥ महीपति कहे सेवकनें, म अंतेउरमां न बने हो ॥ ४०॥ करशे अनरथ गाढो, कर साही बाहिर का ढो हो ॥ ४०॥ १५ ॥ मलय सुंदरी इति नामें, का ढ्यो बहि नुज ग्रही तामें हो ॥ नू०॥ बाह्य गृहे नृप राखे, एक दिन वली एहबुंनांखे हो॥४०॥२॥ रूप कस्युं शे योगें, नरनुं कुण तंत्र प्रयोगे हो ।। तू०॥ इतुं स्वाजाविक जेह, थाशे किम क्यारे तेहवं हो ॥४०॥१॥ तव चिंते सा दियमामें, विलखे जूठ नोगने कामें हो॥४॥मौन कस्यानी वेला, रहेशे ब की एहनी मेला हो ॥ नू॥॥ मलया बाजीजी ती.लपतिनी मति गतिवीती हो ॥
न हीजो थे खमें, कांतें कही ढाल घमंमें हो ॥ ॥ ॥ ३ ॥
॥दोहा ॥ कसी कसी नृप पूबीयुं, हसी न मेले मीट ॥
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