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________________ (१५०) हुलणी आगे वदंत ॥ स०॥मुजसुत वक्षन थावि यो रे, कहेवा सुधि कुण खंत ॥ स ॥ १०॥अथवा कोश्क वैरीय रे, कुमर हएयो बल खेल ॥स०॥ कुंभ ल वसन लीयां तिकें रे, ते आव्यां इंणि वेल ॥स० ॥ ११ ॥ ते माटे निरखं हवे रे, करतो धीज विशु ॥ स० ॥ श्म कही यक्षगहें गई रे, परिकर साथ मुझ ॥ स० ॥ १५ ॥ नृप पहेलो तिहां श्रावियो रे, वीट्यो जणने थाट ॥ स०॥श्राव्या तव विषध र ग्रही रे, गारुमी जोतां वाट ॥ स० ॥ १३ ॥ नूप तिनें कहे गारुमी रे, देव अखंबा हेठ ॥ स ॥ वि वर अनेक निहालतां रे, साधो फणिधर नेत॥ सण ॥ १४ ॥ फूंकारें तर बालतो रे, कालो काजल वान ॥ स ॥ मंत्रप्रयोगें कुंलमां रे, घाल्यो आणी निदा न ॥ स० ॥ ॥ १५॥ यक्ष धनंजय आगलें रे, मूकावे नर कुंन ॥ स० ॥ नर न्हवरावी आणीयो रे, सुनटें करी संरंज ॥ स० ॥१६॥ रूप निहाली तेहy रे, कहे राणी परलोक ॥ स ॥ एडवा गुण मषवी रे, विधि रचना हुई फोक ॥सण्॥१७॥चंड अंगारा जो खरे रे, पावक जल विश्राम ॥ स० ॥ दाह अमृ तथी जो हुवे रे, तो एहथी ए काम ॥ स० ॥१०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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