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________________ (४ए) हा वत्स हानिधि हा कुल दीवमा रे, कुलमंझण कुल मो म॥हा नृप हा नृप अमने उंची चढावीने रे, ध्रसका ईविण गेम ॥रा ॥७॥ कुलनी कुलनी वृद्धाश्म विलपे घणुं रे, नाठी रति दिलगीर॥मनमें मनमें खू तो नेह नरिंदनो रे, जिम तीखेरो तीर ॥ रा॥ धिगधिग धिगधिग अमची बुझिने रे, जे नावी को काम ॥ सहज सहज सनेहो अमने बोमीने रे, जो जावे आम ॥रा ॥ ए॥ मुजरो मुजरो अमचो कुंण लेशे हवे रे, कुंण देसे सनमान ॥ आतम आ तम निचिंतायें वाउला रे, इंम निंदे परधान ॥ राण ॥ १०॥ हा जिणे हा जिणे रूपें काम हरावीयो रे, वली हू निर्देह ॥ सुंदर हो सुंदर हो प्रनु नारी कार णे रे, किम बालीश ते देह ॥रा ॥ ११ ॥ कदीहो कदीहो रूप मनोहर पेखशुं रे, परगट पूनम चंद ।। श्मकही श्मकही नयणे जल प्रवे रे, पुरना रिनां वृंद॥ रा॥शा जनक जनक तणी परें पाख्या प्रेमथी रे, ए सघला पुर लोक ॥ रुलसे रुलसे दैव विडोह्या बापमा रे, जिम दियर विण कोक ॥ राम् ॥ १३॥ नगरी नगरी दीसे आज दयामणी रे, जिम दवदाधुं वन्न। शमकेश्म केश्संचरता नृप मारगेरे, लाखें दीन वचन्न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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