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(२२७) नो उपाय रे ॥ मो० ॥ कम् ॥ १२ ॥ मो० ॥ मंगल मां प्रजी विधे, ध्यान धरी महामंत रे॥ मोक० ॥ ॥ मो० ॥ कटिपटमाथी काढी, विष वालक मणितं त रे ॥ मो० ॥ क० ॥ १३ ॥ मो०॥ दाली मणि जल सिंचीयुं, विकस्यो लोयण लेश रे॥मो।क। मो० ॥ ढांक्या ज्यौं रवि तेजथी, कमल हशे एक दे श रे ।। मो० ॥ क० ॥ १४ ॥ मो० ॥ मुखमां जल सिंच्युं तदा, वलिया सास उसास रे। मो० ॥क० ।। ॥मो० ॥ लोचन पूरी उघड्यां, कमल ज्यों पूर्ण प्रका शरे ॥ मो० ॥क० ॥ १५ ॥ मो० ॥ सर्वगें जल सिं चीयुं, पायुं उदक अशेष रे । मो० ॥ कण ॥ मो०॥ ऊठी आलस मोमती, करती हाव विशेष रे ॥मो० ॥ ॥ कण ॥१६॥ मो० ॥ पनधास्या प्रजुजी हां, कू पथकी किण रीत रे ॥ मो० ॥ क ॥ मो॥ साजी मुजनें किम की, पूडे साधरी प्रीत रे ॥ मोक०॥ ॥ १७॥ मो० ॥ कुतर कहे मांची थकी, पमीयो हुँ जई रे ॥ मो० ॥ क० ॥ मो० ॥ त्यां मणि तेजें एक शिला, दीठी मणिधर हेउ रे॥मोक० ॥१७॥ ॥ मो० ॥ बाने जश्मूठी हणी, उपनियुं तदा बार रे. ॥ मो० ॥ क० ॥ मो० ॥ मणिधर सलक्यो पर मुहें,
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