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(२७) पेगे हूं तिण गर रे ॥ मो ॥क ॥ १५ ॥ मो० ॥ साहस धरि टुं चालीयो, विवरें धरणी मांहिं रे ॥ मो० ॥ कम् ॥ मो० ॥ विषधर दीवीधर थयो, था वे पूंजें उछांहिं रे ॥ मो० ॥ क० ॥ २०॥ मो॥ ए ह सुरंगा चोरनी, तिण वली बीजं बार रे ॥ मो०॥ ॥ क० ।। मो० ॥ होशे एहवू चिंतवी, आघो कीधो प्रचार रे । मो०|| क० ॥१॥ मो० ॥ तेहवे म ख श्रागें थई, मणिधर नागे तेत रे ॥ मो० ॥क०॥ ॥ मो० ॥ श्याम तिमिरकुल नबस्युं, जिम जमता जम चेत रे ॥ मो० ॥ क. ॥ २२ ॥ मो० ॥अनुसा रें हुं चालतो, आयमीयो जई कार रे॥मोक०॥ ॥ मो० ॥ चरण हणी बीजी शिला, नाखी उलटी ति वार रे । मो० ॥ क० ॥ २३॥ मो० ॥ बार विवरचं उघमधुं, नीस रियो बहिआय रे। मो०॥क०॥ मो०॥ जन्म्यो गर्नावासथी, चिंत्युं श्म अकुलाय रे ॥मो॥ ॥ कण ॥ २४॥ मो० ॥ आधेरो चाट्यो वही, जोतो अहिगति लीक रे॥ मो॥क०॥मो॥ शिलाशिरें दीगे अही, बेठगे थई निर्नीक रे॥मो॥क०॥२५॥ ॥ मो० ॥ मंत्र.नणी ते वश कीयो, लीधो तस मणि नंग रे ॥ मो० ॥ का ॥ मो०॥ गिरि नदीयें सम
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