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(१४) उसासो मंमित मासो क्षण दाणे रू०॥ १३ ॥ ते पुःख निशि ग्रहेती न लहे वहेती विश्रमो रू० ॥क रवा तन ताजी प्रगट्यो गाजी प्रहसमो रू० ॥ था को उपचारें नूप तिवारें अति उःखें रू० ॥ पमहो वजमावे साद पमावे जन मुखें रू. ॥ १४ ॥ देश कंन्या बंधुर रणरंग सिंधुर तेहनें रू० ॥ आपे नृप रा जी जे करे साजी एहनें रू० ॥ करता पुर फेरी शेरी शेरी फस्या रू०॥ त्रिक चाचर चोकें नृप पथ धोंके संचस्या रु०॥१५॥थानक सावनटकी पाबग बटकी में वक्ष्या रू०॥ नृप जवननी वाटें आवे उच्चाटें खल जदया रू०॥ चोथे खंमें चावी ढाल सोहावी आग्मी रू०॥ कहे कांति उमंगें रसने रंगे ए गमी रू॥१६॥
॥दोहा॥ ॥ एहवे नर एक अनिनवो, पमह बबे त्यां आय ॥ नृप सुनटें नूपति कन्हें, आएयो तेह बुलाय ॥ १ ॥ नि रखत मुख नृप उलखे, अहो पुरुषनें प्रांहिं ॥ कूप थकी किम नीसरी, आव्यो दीसे हिं॥२॥ दैव हण्यो मुज वैरीयें, कीधो केण कुकऊ ॥ मुजने अल गो जाणीने, काढ्यो ए निर्लऊ ॥ ३ ॥ईम चिंति
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