SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४४) पुर नर नार ॥ आज अवस्था मुज जली रे, दीधी ए किरतार ॥ प्रि॥७॥ मो तनु पुःख पुर्बत यश रे, जो तुंआंख उघाम॥ ग्रीषम पवने आकरी रे, जि म तरु नांख्या जाम ॥ प्रि०॥॥तुं चतुरा चंडानना रे, जीव रहणनी वाम ॥ पण शेण वेला पदमणी रे, हीयतुं नाख्युं जाम ।। प्रि ॥ ए॥ हरिलंकी इसी बोलने रे, निंद रयणरी गंमि ॥कर करुणा मुज का मनी रे, मननी पूर रुहामि ॥ प्रि॥ १० ॥ तुज कारण कीधा घणा रे, सबल जुगति उपचार ॥ हा हा पण उठे नहीं रे, कीजें कवण प्रकार ॥ प्रि॥ २१ ॥ निश्चे दीसे जे हवे रे, पोहोती तुं परलोक ॥ नहिंतो मुख बोले सही रे, वालम करते शोक ॥ प्रि ॥ १२॥ धिग प्रजुता धिग चातुरी रे, धिग जीवन धिग राज्य ।। संकट मांहेथी तुऊने रे, हुं राखी शक्यो नहिं आज ॥ प्रि० १३ ॥ हे मुगधे हे कोपनें रे, हे प्रमदे गई केथ ॥ तुज मुख निरखण उमह्यो रे, हुंपण था कुं तेथ ॥ प्रि॥ १४॥हवे सूधे बोमी हवेरे, तुजने पण निरधार ॥ सांसि सकी नहिं सोकने रे, फिट फि व तुज आचार ॥ प्रि० ॥ १५ ॥ श्म कहीने धरणी ख्यो रे, मूळवशें नूपाल ॥ शीतल जल सिंच्यो घणु . .. . . . . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy