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काल ॥ वीरधवल नामे तिहां, करे राजा हो निज राज संजाल ॥ जं० ॥ २७॥ देशावर नृप नेटणा, बहु आवे हो हय गय रथ कोमि॥ चतुरंगी सेनाधणी, नवि श्रावे हो तहनी कोई जोमि ॥ जं० ॥१५॥को मल चंपक दल जिसी, घर राणी हो रतिने अनुहार॥ चंपकमाला तेहने, शीलादिक हो गुण मणि नंमार ॥ ॥जं ॥२०॥ बीजी कनकवती अबे, सोहागिण हो नृप प्रेम निधान ॥ विलसे रंगे रायसुं, सुखलीणी हो बे चढते वान ॥ जं॥१॥पुर वर्णनी परगमी, ईम कांते हो कही पहेली ढाल ॥ सुणो श्रोता जीजी क री, आगल ले हो अतिवात रसाल ॥ जं ॥ १२ ॥
॥दोहा॥ ॥वीरधवल पालें प्रजा, निज संतति परें तेह ॥ पुःख दोहग दूर करे, दिनदिन धरतो नेह ॥१॥ एक दिन चिंतातुर थर, बेगे तेह नूपाल ॥अतिहिं श्रामण दूमणो, नीची दृष्टि निहाल ॥ ॥ श्राद र नवि दे केहने, दिलगिरी दिल मांद ॥ नमी बय खें नवनवी, रागरंगनी चाह ॥३॥ वदनकमल जां खुं थयु, पुरबल थयुं शरीर ॥ चिंता मायणी आग खें, धीरज कुंण सहे धीर ॥ ४ ॥ चिंता मायणि
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