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( ३०१ ) हो हो जननी मूढता रेहां, पीवे विष तजी खी र ॥ सा० ॥ ११ ॥ आज लगें नवि उलख्यो रेहां, नि र्मल सहज स्वभाव ॥ सा० ॥ जूली जमी जवमां घं रेहां, जिम जलनिधिमां नाव ॥ सा० ॥ १२ ॥ दाव नहिं चूकुं हवे रेहां, करवा निज उचितार्थ ॥ सा० ॥ जीनी परम संवेगमां रेहां, धारी म श्लोकार्थ ॥ सा० ॥ १३ ॥ महबल पण तव ऊजग्यो रेहां, जवथी विषय विमुक ॥ सा० ॥ परिणति संयम सारनी रे हां, हुइ बिदुने अनिमुरक ॥ सा० ॥ १४ ॥ विद्या शीखे शैशवें रेहां, यौवन साधे जोग ॥ सा० ॥ वृद्ध पणे व्रत आदरे रेहां, अंते अणसण योग ॥ सा० ॥ ॥ १५ ॥ नीति पुराणें एहवं रेहां जांख्युं नृप कर्त्त व्य ॥ सा० ॥ महबल मन धारी इश्युं रेहां, सजग हु मन जव्य ॥ सा० ॥ १६ ॥ पुत्र सहसबलनें ठवे रेहां, निजपाटें धरी प्रेम ॥ सा० ॥ सागर तिलकें थापी रेहां, पहेलो शतबल जेम ॥ सा० ॥ १७ ॥ मलया साथें उबवें रेहां, आवे सुगुरु समीप ॥ सा० ॥ पंच महाव्रत उच्चस्यां रेहां, विधिपूर्वक व्यवनी ॥ सा० ॥ ॥ १८ ॥ ढाल हूइ एकत्री शमी रेहां, चोथे खंके दो
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