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(२६७) दल महा पूर्व परिचित तिहां, अमर संजारियो सिद्ध रायें ॥ आवियो करण साहाय्य वेगें वही, नूप हित हेत लागो उपायें ॥ सः॥ १५ ॥ आवता वैरी हथियार अध मारगें, लेय सिहरायनें देव आपे॥ सिफ शर धार वरसी घणा नूपनें, मोरचाथी परा दूर थापे ॥ स० ॥२०॥ कौतुकीबई चंबान बाणे करी, शूरनां वीरनां बत्र बेदें॥ चम चम नेजा धजा मांहिं मूरत वमा, तोमियां चिन्ह नृपनां उमेदें ॥ ॥ स० ॥ २१॥ कर ग्रहे नूप (बहुं शस्त्र जे नांखवा, तेह पण सिद्ध शस्त्रे विखंभे ॥ करत यतना घणी बेहंना देहनी, समरनो खेल इंम वारु मंगे॥ स०॥ ॥ २२ ॥ नूप जांखा पड्या चित्त संकल्पता, समर जना रह्या शस्त्र नांखी ॥ खंग चोथे नली ढाल उंग णीशमी, जाति कमखा तणी कांतें नांखी ॥ स॥३॥
॥दोहा॥ ॥दीन वदन शोकातुरा, जोतां नीची देठ॥ नि रख्या सिद्धे महीपति, नाख्या जाणे वेठि ॥१॥ इम इंम कारज साधना, करवी ते सुरराय॥ईम सम जावीने लिखे, लेख एकतिण गय॥॥बाण मुखें उ वी लेख ते, मूक्यो गुण संधेव ॥ नरपति कुल खो
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