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(११४) रे, आयो गजगामी रे, राखे नहिं खामी बल करतो अमे रे ॥ शर नाखी वंको रे, थयो ते साशंको रे, जिम हुये सुकुल कलंको तिम जांखो पोरे ॥ ६॥ केता नवी ऊठे रे, केई बेग पूंठे रे, केई शरनी मू नेदे थंजने रे ॥ पण थंन न जेद्यो रे, नृप टोलो खे यो रे, निज दर्प उच्छेद्यो बल श्रारंजीने रे ॥ ७ ॥ मरमक मूगला रे, लाज्या जूपाला रे, करता ढकचा ला निंदे आप आपने रे ॥ मांटी पण मूक्यां रे, नुजनुं बल चूक्या रे, साहामा वलीद्वक्या कोई न चाप रे, ॥ ॥ वीरधवल विमासे रे, कुमरी सवि लासें रे, प्रगटी नहीं पासें जनमा लाजणुं रे॥ मह बल ते तेहवे रे, थंन पासें एहवे रे, आव्योधसि के हवे वीणा साजशुं रे ॥ ॥ तिहां वीण वजावी रे, श्राकाश गजावी रे, जूक्यारीजावी जण तंती रसें रे॥ वली धनुष उपानी रे, बोल्यो अति त्रामी रे, परणीश हुँ लामी मुज बलने वशे रे॥१०॥ गांधर्व ए धीगेरे, एहने विधि रुठोरे, नहीं हां मीठो खावो नीखनो
रे॥ श्म कही नृप हसता रे, महबल[सुसतारे, र ' हेशो कर घसता कहुँ मग शीखनो रे॥१२॥ ताएयो .. धनुष ते सीधोरे, टंकारव कीधो रे, जाणे मद पीधो नृ
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