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________________ (३१५) संकट कोमि पलाये, झाने कुमति न वाधे ॥ ज्ञानें सु जश लहे जगमांहीं, ज्ञाने शिवपद साधे रे॥नवि क रजो झा०॥१॥ यद्यपि नाणादिक समुदित इहां, मुगति हेतु जिन नांख्युं ॥ तोपण योगदेमनुं हेतु, पहेलुं ज्ञानज दाख्यु रे ॥ न० ॥॥ पासतणा नि र्वाण दिवसथी, वरिस गयां शत एक ॥ तेहवे हुई सत्य शील सलूणी, मलया सुंदरी सुविवेक रे ॥ ज० ॥३॥ श्लोक एकनो नाव विचार, तह लह। नवपार ॥ ते कारण शिवसाधन साचुं, ज्ञानज एक उदार रे॥ न० ॥४॥ शंख नरेश्वर आगें पहेलु, श्री केशीगणधारें। मलय चरित नांख्युं विस्तरथी, झानतणे अधिकारें रे ॥ न ॥५॥ तेह तणो रस सर्वस्व लेई, श्रीजय तिलक सूरीदें ॥ नूतन मलंयचरित्त संपें, नांख्यु अति आनंदें रे ॥०॥६॥झान रत्नव्याख्या इति नामें, त्रण अधिकारें प्रसिझो ॥ तेहमांहि इंम संबं ध सूधो, धुर अधिकारें लीधो रे ॥ न०॥७॥श्रीत पगण गणनायक गिरुया, श्रीविजयप्रन सूरि ॥ गुण वंता गौतम गुरु तोलें, महीमा महिमा सनूर रे ॥न ॥॥ तास शिष्य कोविदकुल मंगन, प्रेम विजय बु ध राया॥ कांतिविजय तस शिष्ये शणि परें, विध विध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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