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जाव बनाया रे ॥ ज० ॥ ए ॥ संवत सर मुनि मुनि वि धु ( १७१५) वर्षे, रही पाटण चोमास ॥ श्री विजयक्ष मा सूरीश्वर राज्यें, गाई मलया उल्लास रे ॥ ज० ॥ १० ॥
खात्री तो शुभ दिवसें, रास हुई सुप्रमाण || बालककी मानी परें माही, हांसी न करशो सुजाण ॥ ज० ॥ ११ ॥ श्रीजय तिलक वचनथी जे में, न्यूना धिक कांई जांख्युं ॥ संघ सकलनी साखें तेहनुं, मि छाम दाख्युं रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ उत्तमना गुरु परिचय करतां, होय सम कितनो शोध ॥ उत्तर लाज अधिक वली पामे, श्रोता जे प्रतिबोध रे ॥ ज० ॥ १३ ॥ पाटण नगरनो संघ विवेकी, तस आग्रहथी सीधी ॥ चिहुं खंमें थई सर्व संख्यायें, ढाल एकाएं कीधी रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ जे जवि जावें जशे गुणशे, लेदेशे ते जयमाल || जंगुणचाली शमी कही कांतें, चोथा खंग नी ढाल रे || ज० ॥ १५ ॥ सर्व श्लोक संख्या ॥ ३४८८ ॥
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॥ इति श्री ज्ञानरत्नोपाख्यानापरनाम्नि श्रीमलयसुं दरीचरित्रेपं मितकां ति विजयग णि विरचितेप्राकृतप्रबंधे शीलावदातपूर्वजववर्णनोनामाचतुर्थखंमः परिसमाप्तः॥
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