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________________ (१७) सु०॥जो॥ सुखिणी फुःखिणी प्रायें रे हो सु०॥वींटी परिवारके किंहां एकली हो सु०॥६॥ जो ॥ नरप ति तेड्या तेह रे हो ॥ सु॥ वनमां जाणी सुनटे मूकी सुंदरी हो ॥ सु० ॥ जो ॥ अनय बीमो सस नेह रे हो सु० ॥ आपीने पूढे मलया आशरी हो सु ॥ ७॥ जो ॥ कहो सेवक किणी रीत रे हो सु० ॥ माहरी आणाथी मलया क्यां ठवी हो सु॥ ॥ जो० ॥ ते कहे सा जय नीतरे हो सु० ॥रोतीने मू की विकटाटवी हो सु० ॥७॥ जो॥ निरखी एहवा चिन्ह रे हो सु०॥अम मन नास्युं एहनें राक्षसी हो सु०॥ जो ॥ नूपति मन निर्विन्न रे हो सु०॥कुणही व्यामोह्यो खेलें साहसी हो सु० ॥ ए॥ जो ॥ स्त्री हत्या महापाप रे हो सु० ॥ तिमही कुंण खेशे इत्या गाजनी हो सु० ॥ जो० ॥ नहीं हणीय शहां आप रे हो सु० ॥ करणी ए नहीं ले रूमा साननी हो सु०॥ ॥२०॥जो॥खांति गिरितटें ठेव रे हो सु०॥ पमती बाखमती जिम नावे वली होसु०॥जो॥ एकलमी स्वयमेव रे हो सु॥मरशे रमवमती रखम्तीश्राफली हो सु० ॥ ११ ॥ जो॥श्म मन धारी बास रे हो सु०॥ रोती वनमांहें मूकी जीवती हो सु०॥जो० ॥ श्रावी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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