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(३७) ॥ढालचोत्रीशमी॥रागबंगाल॥राजा नहीं नमे ए देशी
॥रेजीउ क्रोधकू पूरे मारि, शांतिदशासौं आप कौं तार ॥ ज्ञानी आतमा ॥ हारे तेरे घरका रूप सं नार ॥ मेरे आतमा॥ हारे रागादिककी संग निवार ॥ तेरे नातमा ॥ ए आंकणी॥ आय मिल्या हे तर न उपाव, मत लूले तुं अबको दाव ॥ झा० ॥१॥ काल अनादिका लटक्या अनंत, अजुश्र न पाया न वजल अंत ॥ ज्ञा० ॥ चूकेगा जो आजका खेल, तो फिरि न मिले पैसा मेल ॥ झा ॥२॥ चढिके श्रा
नाव जिहाज, तर ले नवसागर बिनु पाज॥झा॥ नावमहा प्रवहनकौं फेर, ध्यान पवनसौं तैसें प्रेर ॥ झा०॥३॥ कुशल स्वजावें करिकें करार, जैसें प, 4 जवतटपार ॥ ज्ञा०॥ कुःख पाय ते नरक निगोद करत बसेरा कर्मकी गोद ॥झा॥ ४॥ ता पुःख श्रा गें या पुःख कौन, घटमें बिचारिकें देखत कौन ॥ ॥ ज्ञा० ॥ या महिलाको कबुथ न दोष, मत कर न उपर तुं रोष ॥ ज्ञा० ॥ ५ ॥ कर्म महावन काट न आयु, आश् नई हे साची सहायु॥झा ॥ बाहि र तनकुंजारेंगी आगि, अत्यंतर तन नहीं इन ला गि ॥ ज्ञा०॥६॥ कहा दहेगी अगनि सबोल, अ
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