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(६३)
॥ ढाल शोलमी । गेंफुमानी ॥ एदेशी॥ ॥ पटराणी प्रसव्यो तिहां रे हांजी, सुत तनूजानो युगल अनूप ॥ ए रूमोरे ॥रतिपतिनो रंग, ए रूमोरे ॥ सरसतीनो अंग, ए रूमो रे॥ जिम नंदन खितिथी हवेरे हांजी, कल्पवृक्ष ले अंकूर रूप॥ ए॥१॥ वे गवती दासी धसी रेहांजी, दीये वधामणी नृपने श्रा य॥ए॥ शिर न्हवरावे संतोषसुं रे हांजी, दास करम तस टाले राय ॥ ए ॥२॥ वेग करावो नय रमां रे हांजी, दशदिन नृप थितिपति काज॥ए॥ पुत्रागमननां दर्षथी रे हांजी, हू अपूरव मन सुख साज॥ए०॥३॥ नगर जुवन सविचीतस्यां रे हांजी, बारण उविया सोवन कुंन ॥ ए० ॥ ध्वज पट लह काविया रे हांजी, रोप्या टोमें कदली थंज ॥ ए॥ ४॥ रयणथंन ऊना कख्या रे हांजी, अति सुंदर पु र शोजा हेत ॥ए ॥ तोरण दल सहकारनां रे हां जी, बांध्या नव मंगल शंकेत ॥ ए॥५॥ पुरलो क इट सहेरमां रे हांजी, थापी सोवन दीपक उल ॥ ए० ॥सेरी पंथी पूजावीने रे हांजी, कीधां सींच पण चंदन घोल ॥ ए॥६॥राज मारग त्रिक चा चरें रे हांजी, देवरावे मणि कंचन दान । ए॥
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