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________________ (५२) माला नृप मनमोहनी रे, दीठी दैव संयोग ॥ पेखवी पेखवी नूपतिनो दिल जागी रे, जागो विरह वियो ग ॥ रा० ॥ ३० ॥ चरिज यचरिज पाम्या पुरजन सवे तिहां रे, दूरगया जंजाल ॥ ईणी परें ईणी परें कां ति विजयें कही बारमी रे, सुंदर ढाल रसाल ॥रा० ॥ ३१ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ ॥ लोक सकलवस्थित पणे, नृपने बोले याम ॥ चंपकमाला जीवती, लही सुकृतथी स्वाम ॥ १ ॥ पा लखीयें पोढामीने, राणी आणी गेद ॥ खरी एह के ते दबे, के को बल बे एड् ॥ २ ॥ नृपति कड़े सेवक प्रतें, निरखो शिबिका मांहिं ॥ तेद देद तिमहिंज बे, के विधधरि यदि ॥ ३ ॥ जब सेवक ज‍ नि रखी, व शिबिका पास | तब ते शब हरु हरु हसत, उमी गयो आकाश ॥ ४ ॥ है हुं वच्यो ख रो, बेतरतां नृप बेल ॥ नारि कारण जे नर मरे, ते जग साचा बेल ॥ ५ ॥ म कद्देतो चलतो नजें, ज लत्कार मय दे ॥ दंत मसत करतल घसत, थयो उलका सम ते ॥ ६ ॥ थरता सेवक सवे, याव्या नृपने पास ॥ वीतक व्यतिकर नूपनें, दाख्यो सकल प्रकाश ॥ ७ ॥ राय कहे ए वातनो, कोइ न लड़े वि For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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