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(२६ए) कोमि ॥ स० ॥ कु० ॥ ३॥ निज दयिता पामी ति हां, लाधुं वली नृपराज्य ॥ स० ॥ पूज्य चरण शुन चिंतने, कीg सबल साहाज्य ॥स० ॥ कु०॥४॥ में नुज वीरज दाखीउ, करवा बाल विलास॥स०॥ खमजो अविनय माहरो, करजो कोप विनाश॥स०॥ ॥ कु० ॥ ५ ॥ तात चरण नेट्या तणी, चाद हती निज नित्य ॥ स ॥ ते शुजदैवें माहरी, पूरी श्रा ज अचिंत्य ॥ स ॥ कु० ॥६॥ कई विषाद करो हवे, पउधारो पुरमांहिं ॥ स०॥ वाचत लेख ईस्यो सुणी, पूख्या हर्ष उबाहिं ॥ स० ॥ कु० ॥ ७॥ पर मानंद महारसें, सिंच्या नृप सरवंग॥स ॥ सैनिक समद कहे अहो, अहो अहो ए दिन चंग॥ स०॥ ॥ कुण् ॥ ७॥ कुमरीशुं सुतरत्नजी, मलियो महब ल आई॥ स० ॥ जीवित सफल थयुं हवे, जीवा ड्या महारा॥ स ॥ कु० ॥ ए॥ उहरिया पुःख खाणथी, उहिलममां लहि आथ ॥ स० ॥ काढ्या नरक निवासथी, पमतां साह्या हाथ ॥स०॥ कु०॥ ॥ १० ॥ शूरपाल नृप श्म कही, वीरधवल खेई सं ग॥ स० ॥ महबल साहमो चालियो, धरतो बहुल उमंग ॥ स० ॥ कु०॥ २१ ॥ पूज्य बिनें साहमा
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