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( १०० )
॥ मा० ॥ यणो बांधी हो केमें लागी ॥ मा० ॥ राय कह्याथी हो तस घर लूंट्यो | मा० ॥ परिजन तेहनो हो पकमी कूट्यो | मा० ॥ १४ ॥ वांक विना जे दो पुत्री मारी | मा० ॥ अति पछतावा हो ते चित्तधा री ॥ मा० ॥ सूरज उगे हो राणी सायें ॥ मां० ॥ नर पति बलशे हो चयमां हाथे ॥ मा० ॥ १५ ॥ जिहां तिहां जमती हो नृप जट पेखी ॥ मा० ॥ कनका बी हिनी हो करणी देखी ॥ मा० ॥ म मुज जांखे हो बिहुं विमीयें ॥ मा० ॥ रहेतां जेलां हो हाथे पमीयें ॥ मा० ॥ १६ ॥ हारादिक सवि हो ले निज संगें ॥ मा० ॥ मुजने बोकी हो दोगी रंगें ॥ मा० ॥ मगधा वेश्या हो मिलती पहेली ॥ मा० ॥ ते घर पेठी हो धमकी दे ली ॥ मा० ॥ १७ ॥ हुं एकलमी हो रहीं त्यां न शकी ॥ मा० ॥ रातें ऊठी हो वनमां चसकी ॥ मा० ॥ हां या वीडं दो जय धूजंती ॥ मा० ॥ वात कही में हो जेह वी हुंती ॥ मा० || १८ || हवे हुं जाशुं हो रयणी वि हाणी || मा० ॥ म कहीं सोमा हो यागें उजाणी ॥ मा० ॥ ढाल ए नवमी हो बीजे खंदें ॥ मा० ॥ कांति पयंपे दो वचन खंकें ॥ मा० ॥ १७ ॥ इति ॥
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