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॥ बडी ढाल रसाल, ए बीजा खंरुनी; कांतें कही मीठास, जरी मधुखंरुनी ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ रोष गहिल नरपती तिहां, अमने करी विदाय ॥ चंपकमाला जामिनी, बोलावी विलखाय ॥ १ ॥ व्य तिकर सर्व सुणावियो, राणीने राजान ॥ निजपुत्री उपर तिका, थई रोष छासमान ॥ २ ॥ मांगो हार मनोहरु, जो नवि देसे बाल ॥ तो व्यतिकर सघलो खरो, ईम कहे चंपक माल ॥ ३ ॥ कन्या तेमी मांगीयो, हार रयण ततकाल ॥ मनूली मौनें रही, मनमां पेठी जाल ॥ ४ ॥ चित्त विकल्पी कूम इम, उत्तर दीधुं एए ॥ तात हार मुज कंठ थी, अपहरि लीधो के ॥५ ॥ अवगुण ई अति सबल, वचन पवन नृप कुंम ॥ रोष नल कुमरी दहन, वागो जई ब्रह्मंग ॥ ६ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ जीणा मारुजीनी करहलकी, करह लमी केशररो कूपो मने लाहो राज ॥ एदेशी ॥ ॥ नृप कहे निज पुत्री जणी, फिट पापिणी इति यारी, मुखऊं कांई देखाने होराज ॥ लगी रहे मुज नयांथी, कुलपणी मति हीणी, मुजकां लाज ल गाने होराज ॥ १ ॥ न्हानी पण दोषें जरी, जिम वि
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