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________________ ( २३७ ) व ॥ ढाल तेरमी ॥ विंजाजी हो रतन कूठे मुख सांकको रे विजा, किम करी करूं रे ऊकोल || रायविंजा, सयण मारू ॥ ए देशी ॥ ॥ साधकजी हो एह पुरनें तिकको रे मित्ता, नामें गिरिबन्न टंक || सिद्ध रूमा, सयण म्हारा ॥ ॥ सा० ॥ विषम ऊरध शिखरें तिहां रे मित्ता, निरमंक || सिद्ध० ॥ १ ॥ सा० ॥ फल तेहनां यति सीयलां रे मित्ता, लहीयें बारही मास ॥ सि० ॥ सा० ॥ ते शिखरें उंचा चढी रे मित्ता, तलपी हवे आकाश ॥ सि० ॥ २ ॥ सा० ॥ विषम थलें या शिरें रे मित्ता, पोहोचीनें फल लेय ॥ सि० ॥ ॥ सा० ॥ ऊंपावो वली अंबंधी रे मित्ता, नूतल जा ग तकेय ॥ सि० ॥ ३ ॥ सा० ॥ श्रवो इहां कुशलें बड़ी रे मत्ता, मूको फल नृप जेट ॥ सि० ॥ सा० ॥ पित्तविकार नारदनो रे मित्ता, टलशे तेहथी नेट ॥ ॥ सि० ॥ ४ ॥ सा० ॥ कुमर विमासे दो हिलो रेमि त्ता, ए पण नृप आदेश ॥ सि० ॥ सा० ॥ थानक मरण त सही रे मित्ता, न फुरे जिहां मति लेश ॥ सि० ॥ ५ ॥ सा० ॥ जो न करूं तो कामिनी रे मित्ता, नापे ए नरनाथ ॥ सि० ॥ सा० बिहुं वातें For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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