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(8) कुमरनणे सुण बाल करो चिंता किसी हो॥क ॥ करवा तुम संजाल श्राव्यो हुँ उखसी हो ॥श्रा॥ देखो उघामो आंख हवे कां पांतरो हो ॥ ह० ॥ नाखो विरहो तामी करो मत अांतरो हो ॥ क०॥ ॥१५॥ उठी बाला रंग मिलि मन मोदसुं हो॥ मि॥ माथु थतिहें उमंग धरे तस गोदमां हो॥ध॥बीजे खेमे ढाल थई बीजी हां हो ॥ थई० ॥ कांति कहे वर बाल बिहुँ मिलिया तिहां हो॥ बि० ॥२०॥
॥ दोहा ॥ ॥ करे विविध तिहां गोठमी, बिहुँ जण प्रेम धरंत ॥ कुमर कहे सवि आपणो, ते आगल विरतंत॥१॥ पुहवी गण तणो धणी, सूरपाल मुज तात ॥ पट देवी पद्मावती, तेहनो हुँ तन जात ॥२॥नाम महा बल माहरो, देश निरखणनी खंत ॥ नृप कामे परि वारशें, इहां आव्यो गुणवंत ॥३॥ निरखत अचरज पुरतणां, दीगे तें उपकंठ ॥ लेख लख्यो ते वाचतां, जाग्यो नेह उद्धं ॥४॥ मली हसि हवेशीख , चालण मुख सहु साथ ॥ वचनसुणी बाला विलपि, श्म कहे जोमी हाथ ॥ ५॥
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